क्या आप भी शिवरात्रि का व्रत रखते है? अगर हाँ तो शायद आपको शिवरात्रि के बारे में पूरी जानकारी होगी. अगर नहीं तो पढ़िए आज के इस लेख को और जानिए क्या है Mahashivratri Ki Katha हिन्दी भाषा में.
महाशिवरात्रि /mahashivratri भगवान शिव का त्यौहार है, जिसका हर शिव भक्त बेसब्री से इंतजार करते है. यह त्यौहार हिन्दू तिथि के हिसाब से फाल्गुन कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी/चतुर्दशी को मनाया जाता है.
हिन्दू पुराणों के अनुसार माना जाता है कि इसी दिन सृष्टि के आरंभ में मध्यरात्रि मे भगवान शिव ब्रह्मा से रुद्र के रूप में प्रकट हुए थे, इसीलिए इस दिन को mahashivratri/महाशिवरात्रि या शिवरात्रि कहा जाता है.
काफी लोगो का मन्ना है कि शिवरात्रि हम इसलिए मनाते हैं क्यूंकि इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती की शादी हुई थी. वही कुछ लोगो का मन्ना है कि इस दिन भोले बाबा ने ने ‘कालकूट’ नाम का विष पिया था जो सागरमंथन के समय समुद्र से निकला था.
चलिए आइये अब जानते हैं कि असल में हमारे शिव रात्रि मनाने के पीछे वजह क्या है? भगवान शिव के विष पिने के पीछे वजह क्या है, शिव पुराण की कथा क्या है? तो चलिए शुरू करे-
Mahashivratri Ki Katha in Hindi – शिव पुराण की कथा, शिव पूजा विधि

महाशिवरात्रि के दिन लोग व्रत रखते हैं और शिव पूजा विधि को अच्छी तरीके से फॉलो कर के करते है, शिवरात्रि के व्रत से एक पौराणिक कथा भी जुडी हैं. आइये जानते हैं shivratri katha in hindi .
नोट – दोस्तों आप चाहे तो इस शिव पुराण की कथा को याद कर आने वाले shiv pooja (13 फरबरी) को अपने संग के लोगो को सुना सकते हैं.
Mahashivratri Story in Hindi – महाशिवरात्रि की कथा
प्राचीन काल की बात है, एक गांव में गुरूद्रूह नाम का एक शिकारी रहता था. जानवरो का शिकार करके वह अपने परिवार का पालन पौषण किया करता था.
शिवरात्रि के दिन जब वह शिकार के लिए गया, तब पूरे दिन शिकार खोजने के बाद भी उसे कोई जानवर नहीं मिला. थक जाने के बाद वो परेशान होकर एक तालाब के पास गया और तालाब के किनारे एक पेड़ पर अपने साथ पीने के लिए थोडा सा पानी लेकर चढ गया.
वह “बेल-पत्र” का पेड़ था और ठीक इसके नीचे एक प्राकर्तिक शिवलिंग भी था जो सूखे बेलपत्रों से से ढका हुआ था जिसकी वजह से वह शिवलिंग दिखाई नहीं दे रहा था.

अनजाने मे उसके हाथ से कुछ बेल-पत्र एवं पानी की कुछ बूंदे पेड़ के नीचे बने शिवलिंग पर गिरीं और जाने अनजाने में दिनभर भूखे-प्यासे शिकारी का व्रत भी हो गया और पहले प्रहर की पूजा भी हो गई.
रात की पहली पहर बीत जाने पर एक गर्भिणी हिरणी तालाब पर पानी पीने पहुंची, जैसे ही शिकारी ने उसे मारने के लिए अपने धनुष पर तीर चढ़ाया हिरणी ने घबरा कर ऊपर की ओर देखा ओर शिकारी से कांपते हुए स्वर में बोली
हिरणी – ” हे शिकारी मुझे मत मारो।”
शिकारी – मै मजबूर है क्योकि मेरा परिवार भूखा है, इसलिए मै अब तुमको नहीं छोड सकता.
हिरणी – मै अपने बच्चों को अपने स्वामी को सौंप कर लौट आउंगी, फिर तुम मेरा शिकार कर लेना.
इतना सुनने के बाद शिकारी को हिरणी पर दया आ गयी और उसने उसे जाने दिया. फिर वो वही अभी बेल पत्र के पेड़ पर हिरणी का इंतज़ार कर रहा था. तभी उसकी नज़र दूसरी हिरणी पर पड़ती है, जो अपने बच्चो के साथ वहा से गुज़र रही थी.
ठीक पहले वाली हिरणी की तरह इस हिरणी के साथ भी शिकारी की वही बात हुई और हिरणी की अपने बच्चो के प्रति आपार ममता को देखकर शिकारी को उस पर भी दया आ गई और उसे भी जाने दिया.
समय व्यतीत करने के लिए शिकारी बेल के वृष के पते तोड़ तोड़ कर नीचे फैकता गया तभी शिकारी को एक ओर हिरण दिखाई दिया और शिकारी ने उसे मारने हेतु अपना धनुष झट से उठा लिया.
शिकारी को देख हिरण ने कहा – अगर तुमने मेरे बच्चो और मेरी पत्नी का शिकार कर दिया है तो कृपया मेरा भी शीर्घ शिकार कर दो और यदि उन्हें जीवनदान दिया है तो मेरे प्राण भी कुछ समय के लिए दे दो ताकि मै अपने बच्चो से एक बार मिल सकू.
इसके बाद मै तुम्हे वचन देता हूँ की मै तुम्हारे सामने उपस्थित हो जाऊंगा. शिकारी ने उसे भी जाने दिया और कुछ समय के बाद तीनो हिरण शिकारी के सामने उपस्थित हो गए.

शिकारी दिनभर भूखा-प्यासा रहा और अंजाने में ही उससे शिवलिंग की पूजा भी हो गई थी और इस प्रकार शिवरात्रि का व्रत भी संपन्न हो गया था. शिकारी भूतकाल में हुए अपने द्वारा निर्दोष जीवों की हत्या के पश्चाताप से दुखी था.
व्रत के प्रभाव से उसका मन पाप मुक्त और निर्मल हो गया और उसने तीनो हिरणों को छोड़ दिया.
तभी वहा भगवान शिव प्रकट हुए और बोले – आज के बाद तुम्हे ऐसा काम नहीं करना होगा जो तुम्हे पाप और आत्मग्लानी के बोझ तले दबाता जा रहा है.
तभी शिकारी ने रोते हुए कहा – ऐसी कृपा मुझ पापी पर क्यों?.
भगवान शकंर ने कहा – आज शिवरात्रि है और तुमने अनजाने में ही सही लेकिन मेरा व्रत और बेलपत्रो से मेरी पूजा की है. इसलिए तुम्हारा कायाकल्प हुआ है और तुम्हारा मन पवित्र हुआ है.
आज के बाद जो भी शिवभक्त mahashivratri/महाशिवरात्रि के दिन यह कथा सुनेगा उसे वह सब फल मिलेगा जो तुम्हे मिला है.
दोस्तों ऐसे ही भोले बाबा की कई शिव पुराण की कहानियाँ है, जिनको shiv puran भी कहा जाता है, Mahashivratri ki Katha उन्ही में से एक है.
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Mahashivratri ki Katha का ये लेख पढने के लिए आपका धन्यवाद, मेरी तरफ से आप सभी को महाशिवरात्रि की ढेर सारी शुभकामना.